सदमा या आघात शरीर की वह स्थिति है, जिसमें किसी गंभीर चोट, आकस्मिक घटना या मानसिक असंतुलन के कारण शरीर की जीवन-निर्वाह क्रियाएँ मंद पड़ जाती हैं। आघात के दौरान रक्त परिसंचरण की प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और गंभीर मामलों में यह स्थायी रूप से न्यूनता तक पहुँच सकता है। आघात दो प्रकार का होता है:
-
नर्व शॉक (Nerve Shock) – यह तब होता है जब शरीर अचानक किसी मानसिक या शारीरिक झटके से प्रतिक्रिया करता है।
-
स्थापित शॉक (Established Shock) – यह तब होता है जब शरीर पहले से किसी गंभीर चोट या दुर्घटना के कारण लगातार कमजोर हो जाता है।
सदमा या आघात के कारण
आघात के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कारक शामिल हैं। प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
-
अत्यधिक रक्त बहना – शरीर से बहुत अधिक रक्त निकल जाने के कारण शरीर की ऊर्जा और रक्त परिसंचरण प्रभावित होता है।
-
गंभीर जलन (Burns) – शरीर के किसी हिस्से में जलन होने से अत्यधिक दर्द और शॉक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
-
अत्यधिक दर्द – गंभीर चोट या चोट से उत्पन्न दर्द आघात का कारण बन सकता है।
-
अत्यधिक ठंड लगना – शरीर का तापमान अचानक कम होने से शॉक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
-
मानसिक तनाव या तंग करना – रोगी के साथ छेड़खानी, तंग करना या मानसिक उत्पीड़न आघात को बढ़ा सकते हैं।
-
अत्यधिक भावनात्मक प्रभाव – अत्यधिक खुशी, गम या चिंता के कारण भी आघात की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सदमा या आघात के लक्षण और संकेत
आघात के दौरान शरीर और मानसिक स्थिति में कई बदलाव दिखाई देते हैं। प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:
-
रोगी का चेहरा और होठ पीले या नीले पड़ जाते हैं।
-
माथे पर ठंडे पसीने दिखाई देते हैं।
-
त्वचा ठंडी और चिपचिपी हो जाती है।
-
नब्ज तेज और असमान महसूस होती है।
-
रोगी को उल्टी आने की इच्छा होती है।
-
श्वास का तालमेल बिगड़ जाता है।
-
रोगी बेचैनी और असहजता महसूस करता है।
-
शरीर का तापमान कम हो जाता है।
-
शरीर शिथिल और सुस्त हो जाता है।
-
रोगी को अत्यधिक प्यास लगती है।
इन लक्षणों को पहचानना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सही समय पर फर्स्ट ऐड देना जीवनरक्षक हो सकता है।
सदमा या आघात में फर्स्ट ऐड
आघात की स्थिति में तुरंत उचित उपाय करना बहुत आवश्यक है। फर्स्ट ऐड के मुख्य कदम इस प्रकार हैं:
-
रोगी को आरामदायक स्थिति में रखें। उसे शांत और सुरक्षित महसूस कराएँ।
-
उसके प्रति सहानुभूति और ढाढस दिखाएँ। सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें।
-
जहाँ से रक्त बह रहा हो, उसे तुरंत रोकें।
-
रोगी के छाती, गर्दन और कमर के कपड़े ढीले कर दें, ताकि सांस लेने में आसानी हो।
-
आसपास की भीड़ को हटा दें और रोगी के लिए छाया और ताजी हवा का प्रबंध करें।
-
रोगी के शरीर की गर्मी बनाए रखें, आवश्यकतानुसार कपड़े ढकें।
-
रोगी को कम से कम और सावधानीपूर्वक हिलाएँ।
-
रोगी के पैर थोड़े ऊँचे रखें, और यदि छाती पर घाव है तो सिर को भी थोड़ा ऊँचा रखें।
-
रोगी की बीमारी के बारे में किसी से कानाफूसी न करें, यह उसे और असहज बना सकता है।
-
यदि रोगी बेहोश नहीं है और सिर या पेट में घाव है, तो खाने-पीने के लिए कुछ न दें; केवल बर्फ चूसने दें।
-
रोगी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गर्म चाय, दूध या कॉफी दें, अधिक चीनी मिलाकर।
-
यदि रोगी मूर्छित है या श्वास लेने में कठिनाई हो रही है, तो (सूंघने वाला नमक) प्रयोग कर सकते हैं, बशर्ते सिर पर घाव न हो।
-
यदि रोगी वमन करना चाहता है, तो मुँह एक ओर मोड़ दें; सीधे न रखें।
-
तुरंत चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करें।
No comments:
Post a Comment